शनिवार, 11 जून 2011

पुकारता रहा हृदय, पुकारते रहे नयन





मगर निठुर न तुम रुके, मगर निठुर न तुम रुके!
पुकारता रहा हृदय, पुकारते रहे नयन,
पुकारती रही सुहाग दीप की किरन-किरन,
निशा-दिशा, मिलन-विरह विदग्ध टेरते रहे...

मगर निठुर न तुम रुके!

गोपालदास "नीरज"

2 टिप्‍पणियां:

  1. गोपाल दास जी तो महान हैं...आप इस नीरज को भी सुन लें:

    जी चाहता है सुर में, उसके मैं सुर मिला दूँ
    आवाज़ कब से कोयल, पी को लगा रही है



    नीरज

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  2. Thnx for koyal darshan...more meaningful than poem because poem only u can relate to and the picture i too can relate to !

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