dil dhuundhta hai
इक शग़ल और सही…तस्वीरों की दुनिया
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शनिवार, 11 जून 2011
पुकारता रहा हृदय, पुकारते रहे नयन
मगर निठुर न तुम रुके, मगर निठुर न तुम रुके!
पुकारता रहा हृदय, पुकारते रहे नयन,
पुकारती रही सुहाग दीप की किरन-किरन,
निशा-दिशा, मिलन-विरह विदग्ध टेरते रहे...
मगर निठुर न तुम रुके!
गोपालदास "नीरज"
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