एक नदी की बात सुनी... इक शायर से पूछ रही थी रोज़ किनारे दोनों हाथ पकड़ कर मेरे सीधी राह चलाते हैं रोज़ ही तो मैं नाव भर कर, पीठ पे लेकर कितने लोग हैं पार उतार कर आती हूँ ।
रोज़ मेरे सीने पे लहरें नाबालिग़ बच्चों के जैसे कुछ-कुछ लिखती रहती हैं।
क्या ऐसा हो सकता है जब कुछ भी न हो कुछ भी नहीं... और मैं अपनी तह से पीठ लगा के इक शब रुकी रहूँ बस ठहरी रहूँ और कुछ भी न हो ! जैसे कविता कह लेने के बाद पड़ी रह जाती है, मैं पड़ी रहूँ...!
be-intahah khoobsurat parul ji...
जवाब देंहटाएंBeautiful, in fact very beautiful...
जवाब देंहटाएंएक नदी की बात सुनी...
जवाब देंहटाएंइक शायर से पूछ रही थी
रोज़ किनारे दोनों हाथ पकड़ कर मेरे
सीधी राह चलाते हैं
रोज़ ही तो मैं
नाव भर कर, पीठ पे लेकर
कितने लोग हैं पार उतार कर आती हूँ ।
रोज़ मेरे सीने पे लहरें
नाबालिग़ बच्चों के जैसे
कुछ-कुछ लिखती रहती हैं।
क्या ऐसा हो सकता है जब
कुछ भी न हो
कुछ भी नहीं...
और मैं अपनी तह से पीठ लगा के इक शब रुकी रहूँ
बस ठहरी रहूँ
और कुछ भी न हो !
जैसे कविता कह लेने के बाद पड़ी रह जाती है,
मैं पड़ी रहूँ...!
-- गुलज़ार
THX CHINTAN,SARU,RICHA
जवाब देंहटाएंn
GULZAAR PHIR GULZAAR....
GAZAB...:-) CHITR KYA YELLOW FILTER LAGA KAR LIYE HAIN?ADBHUT HAIN.
जवाब देंहटाएंNEERAJ
Neeraj ji... Jaadu hai :)
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